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शरियत कानून में संपत्ति पर किसका ज्यादा हक? सुप्रीम कोर्ट ने दिया फैसला

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Muslim Law Board: इस्मेंलाम संपत्ति का बंटवारा, इंडियन सक्सेशन एक्ट के जरिए नहीं होता है. कुछ लोग चाहते हैं कि संपत्ति का बंटवारा, शरियत के आधार पर न होकर, सेक्युलर कानूनों के हिसाब हो. पढ़ें सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कहा क्या है.

भारत में हर धर्म के अपने व्यक्तिगत कानून हैं. व्यक्तिगत कानूनों में शादी, संपत्ति के बंटवारे और उत्तराधिकार जैसे मुद्दों को रखा गया है. भारत में मुस्लिमों के व्यक्तिगत कानून, शरियत एक्ट के तहत होते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक ऐसे याचिका की सुनवाई की, जिसमें मांग की गई थी कि जो मुसलमान, नास्तिक हैं, या इस्लाम को अपना धर्म नहीं मानते हैं, वे सेक्युलर कानून इंडियन सक्सेशन एक्ट के तहत क्यों कानूनी लाभ नहीं मिलने चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट से याचिकाकर्ता की मांग है कि वह शरियत कानूनों के तहत नहीं, इंडियन सक्सेशन एक्ट के तहत अपनी संपत्तियों को अपने बच्चों में बराबर बांटना चाहता है क्योंकि वह नास्तिक है. शरियत कानून, संपत्ति पर बेटों को असीमित अधिकार देता है, वहीं बेटियों के लिए ऐसे प्रावधान इस कानून में नहीं है. 

मुस्लिम महिला ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की है कि वह और उसके पिता, इस्लाम में विश्वास नहीं करते हैं. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूडड की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि हम यह नहीं कह सकते हैं कि एक गैर आस्तिक मुस्लिम ISA के तहत आएंगे. उन्होंने कहा कि याचिका ने हम मुद्दा उठाया है.

धर्मनिरपेक्ष कानून मुस्लिमों पर क्यों नहीं लागू होता?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘कैसे एक धर्म निरपेक्ष कानून मुस्लिमों पर नहीं लागू होता है?’ बेंच ने यह सवाल किया और इस केस को जुलाई तक के लिए टाल दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को इस मुद्दे पर नोटिस भेजा है और अटॉर्नी जनरल वेंकेटरमनी से अनुरोध किया है कि एक कानूनी अधिकारी की नियुक्ति करें, जिससे कोर्ट की मदद हो सके.

क्या है याचिकाकर्ता की मांग

याचिकाकर्ता महिला का कहना है कि उसका एक भाई डाउन सिंड्रोम से पीड़ित है. वह और उसके पिता उसकी देखभाल करते थे. उसकी मां मर चुकी हैं. शरियत के मुताबिक बेटी को अपने पिता के उत्तराधिकारी के रूप में बेटों का केवल आधा हिस्सा मिलता है. अगर इस कानून से चले तो बेटे को अपने पिता की संपत्ति का दो-तिहाई हिस्सा मिलेगा और बेटी को महज एक तिहाई मिलेगा.

याचिकाकर्ता के वकील वकील प्रशांत पद्मनाभन ने कोर्ट से कहा कि अगर बेटे को कुछ हुआ तो उसका हिस्सा उसे या उसकी बेटी को नहीं, बल्कि उसके पिता के किसी रिश्तेदार को मिलेगा. 

याचिकाकर्ता महिला ने कहा, ‘ऐसा कोई अधिकार नहीं है जहां मेरे पिता जाकर कह सकें कि वह एक गैर-आस्तिक मुस्लिम हैं और वह धर्मनिरपेक्ष इंडियन सक्सेशन एक्ट के जरिए उत्तराधिकार कानून चाहते हैं.’ 

सुप्रीम कोर्ट ने शरियत एक्ट की धारा 3 पढ़ने के बाद कहा, ‘अगर पिता मुस्लिम नहीं है, तो वह मुस्लिम पर्सनल लॉ के प्रावधानों से बच सकता है लेकिन CJI की अध्यक्षता वाली बेंच ने ISA की धारा 58 को पढ़ा है, जिसमें लिखा है कि कोई भी मुसलमान संपत्ति के लिए इंडिनय सक्सेशन एक्ट के इस कानून के अंतर्गत नहीं आएगा.’

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