Thursday, May 22, 2025
Homeराजनीतिभाजपा से जुदा होने के लिए नीतीश कुमार ने तैयार किए कई...

भाजपा से जुदा होने के लिए नीतीश कुमार ने तैयार किए कई आधार, बिदके CM तो बिगड़ेगी बात 

बिहार के सीएम नीतीश कुमार इस बार खुले मन से भाजपा के साथ हैं। भाजपा से अब अलग न होने की कई बार उन्होंने सफाई भी दी है। पर, नीतीश कुमार के कई ऐसे मुद्दे हैं, जिन्हें भाजपा ने नजरअंदाज किया तो बात बिगड़ सकती है। क्या हैं वे मुद्दे, जानिए इस रिपोर्ट में-

आरजेडी सुप्रीमो और बिहार के सीएम रह चुके लालू प्रसाद यादव ने पिछले दिनों यह कह कर बिहार में सियासी बवाल मचा दिया था कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार अगस्त में गिर जाएगी। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे भी कह चुके हैं कि वे लोग चाहते हैं कि बनी है तो नरेंद्र मोदी की सरकार चले, पर ऐसा दिखता नहीं है। इस बीच भाजपा के सहयोगी नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले जेडीयू ने कुछ ऐसे फैसले लिए हैं, जो सच में भाजपा के लिए मुसीबत पैदा कर सकते हैं। हालांकि बिना किसी सियासी तिकड़म के इन फैसलों के सहारे नीतीश का भाजपा से अलग होगा असंभव दिखता है, पर राजनीति जिस दौर में दिख रही है, उसमें ऐसी कोई परिघटना हो जाए तो आश्चर्य की बात भी नहीं है।

नीतीश की नाराजगी के बिंदु- पहला

केंद्रीय जांच एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की टीम ने मंगलवार को पटना, दिल्ली, अमृतसर, चंडीगढ़ और पुणे में करीब 20 ठिकानों की तलाशी ली। इनमें बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारी संजीव हंस के ठिकाने भी हैं। संजीव के घर से 1100 ग्राम यानी 110 तोला सोना अन्य कीमती सामान के साथ बरामद किया गया। संजीव हंस को नीतीश कुमार का बेहद करीबी अधिकारी माना जाता है। वे ऊर्जा विभाग के प्रधान सचिव हैं। अपनी छवि को लेकर संवेदनशील नीतीश कुमार को यकीनन यह पसंद नहीं आया होगा। इसलिए कि अफसरों की संपत्ति को लेकर नीतीश कुमार काफी सचेत रहे हैं। उनकी आय का लेखा-जोखा वे हर साल मांगते रहे हैं। सरकारी अधिकारियों पर नीतीश का भरोसा भी काफी रहा है। वे अपने विधायकों या नेताओं तक की बात न मानने की अफसरों को काफी पहले सलाह दे चुके हैं। इसके पीछे उनका मकसद यही रहा है कि अधिकारी किसी के दबाव में फैसले न लें। उनका यह फरमान अधिकारियों का मोरल बनाए रखने के उद्देश्य से है। इतना ही नहीं, सरकारी बाबुओं की अवैध कमाई पर नजर रखने के लिए नीतीश की आर्थिक अपराध इकाई (ईओयू) भी काफी सक्रिय रही है। इसके बावजूद ईडी की कार्रवाई उन्हें नहीं सुहाई होगी, क्योंकि संजीव हंस उनके भरोसेमंद अफसर रहे हैं।

नीतीश की नाराजगी के बिंदु- दूसरा

ऐसा लगता है कि नीतीश कुमार ने पहले से ही ऐसे मुद्दों की पड़ताल कर ली है, जो भाजपा से उनके अलग होने का आधार बन सकें। बिहार को विशेष राज्य के दर्जे की दराज में दबी मांग को जेडीयू की ओर से पुनर्जीवित करना इसी बात की ओर इशारा करता है। जेडीयू कार्यकारिणी की बैठक में प्रस्ताव पास कराने से लेकर बयानों तक नीतीश कुमार और उनकी पार्टी के नेता यह मांग करने लगे हैं। हम (से) के संस्थापक, बिहार के पूर्व सीएम और फिलवक्त केंद्र में मंत्री जीतन राम मांझी ने जेडीयू की मांग को खारिज करने वाला बयान देकर आग में घी डालने का काम किया है। मांझी ने इसे असंभव बताया है। जहानाबाद में पत्रकारों से मांझी ने कहा था कि विशेष राज्य का दर्जा देना या नहीं देना नीति आयोग तय करता है। जो राज्य कमजोर हैं, उन्हें मजबूत बनाने के लिए एनडीए सरकार विशेष व्यवस्था करेगी। पर, बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिलना संभव नहीं है। मांझी का बयान जेडीयू को रास नहीं आया है।

नीतीश की नाराजगी के बिंदु- तीसरा

झारखंड में भाजपा छोड़ निर्दलीय के रूप में पूर्व सीएम रघुवर दास को हराने वाले सरयू राय अब नीतीश कुमार के करीब पहुंच गए हैं। पखवाड़े भर के अंतराल पर दोनों की दो बैठकें हो चुकी हैं। अब तो सरयू राय की जेडीयू में स्वागत की औपचारिकता भर बाकी रह गई है। अगर ऐसा होता है तो सरयू राय झारखंड में जेडीयू के झंडाबरदार बन जाएंगे। निश्चित ही यह भाजपा को अच्छा नहीं लगेगा। इसलिए कि भाजपा ने पहले सरयू राय का टिकट काटा और बागी होने पर पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। सरयू राय की वजह से 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को नुकसान भी उठाना पड़ा। भाजपा को सबक सिखाने के लिए ही सरयू राय ने नीतीश कुमार के साथ अपने संबंधों को पुनर्जीवित किया है। इसका साफ संकेत है कि झारखंड में अकेले चुनाव लड़ती रही भाजपा को इस बार गठबंधन धर्म का पालन करते हुए अपनी घोषित सहयोगी आजसू पार्टी के अलावा जेडीयू के लिए भी सीटों में हिस्सेदारी देनी होगी। ऐसा नहीं होने पर जेडीयू अकेले भी चुनाव मैदान में उतर सकता है। इसलिए कि अब झारखंड में उसके साथ सरयू राय होंगे। चर्चा तो यह भी है कि जेडीयू झारखंड के अलावा दिल्ली में भी विधानसभा चुनाव लड़ेगा।

नीतीश की नाराजगी का चौथा बिंदु

भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के इनकार के बाद नीतीश कुमार ने बिहार में जाति सर्वेक्षण कराया। सर्वेक्षण के आंकड़ों के हिसाब से आरक्षण सीमा बढ़ाई। उन्होंने अपनी सरकार के इस फैसले को नौवीं अनुसूची में शामिल करने का केंद्र से आग्रह किया, लेकिन यह काम अभी तक अटका हुआ है। इस बीच पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार के फैसले पर रोक लगा दी है। इसे अब राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी में है। नौवीं अनुसूची में शामिल करने का आग्रह नीतीश सरकार ने इसलिए किया था कि उसके बाद यह न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर हो जाता। पूर्व में तमिलनाडु ने ऐसा किया भी है। नीतीश की नाराजगी का यह भी एक आधार हो सकता है। जाति सर्वेक्षण और आरक्षण नीतीश की चुनावी रणनीति के ब्रह्मास्त्र हैं। जातिगत सर्वेक्षण के आधार पर आरक्षण सीमा बढ़ा कर नीतीश ने तो इतिहास रच ही दिया है। ये कुछ ऐसे संकेत हैं, जो साबित करते हैं कि नीतीश भाजपा से पंगा लेने का मूड बनाने लगे हैं।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -spot_imgspot_imgspot_img

Most Popular

Recent Comments