Jammu And Kashmir Assembly Election: जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया गया है. वहां की प्रमुख क्षेत्रीय पार्टियां इस चुनाव में दमखम दिखाने की तैयारी कर चुकी हैं. 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35 ए के हटाए जाने के साथ कुछ नेताओं को नजरबंद कर दिया गया था. रिहाई के बाद पीडीपी की महबूबा मुफ्ती और नेशनल कॉन्फ्रेंस के उमर अब्दुल्ला ने कहा था कि जब तक जम्मू-कश्मीर को राज्य नहीं बनाया जाता वह विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे.
जम्मू-कश्मीर में तीन चरणों में 3 विधानसभा चुनाव होने हैं. 18 सितंबर, 25 सिंतबर और 1 अक्टूबर. 4 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव के परिणाम आएंगे. चुनावी तारीखों के ऐलान के साथ ही नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फॉरुख अब्दुल्ला ने कहा कि वह विधानसभा चुनाव लड़ेंगे और जीतने के बाद इस्तीफा दे देंगे. वहीं, अभी महबूबा मुफ्ती ने इस पर कुछ नहीं कहा है.
अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद नजरबंद किए गए नेताओं में फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती भी शामिल थी. रिहाई के बाद उमर और महबूबा ने जनता से कसम खाई थी कि जब तक जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य नहीं बनाया जाता तब तक विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे. उमर अब्दुल्ला के पिता फारुक अब्दुल्ला ने तो कसम की तोड़ निकालते हुए कहा कि वह विधानसभा चुनाव में ताल तो ठोकें लेकिन जीतने के बाद इस्तीफा दे देंगे.
उमर की कसम के नाम पर मांग सकते हैं वोट
नेताओं ने रिहाई के चुनाव न लड़ने की कसम जनता के सामने खाई थी. फारुक अब्दुल्ला ने चुनाव लड़ने का ऐलान करके अपने बेटे की दी कसम को भी बचा ली और जनता को ये भी दिलासा दे दी की नेशनल कॉन्फ्रेंस के मुखिया विधानसभा चुनाव में ताल ठोकेंगे. यानी पार्टी के नेता जनता से ये बात कहकर वोट मांग सकते हैं कि उमर ने चुनाव न लड़ने का वादा किया था और उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा.
मुफ्ती के लिए धर्मसंकट वाली स्थिति
पीडीपी मुखिया महबूबा मुफ्ती के लिए धर्मसंकट वाली स्थिति है. अगर वह वादा तोड़कर चुनावी मैदान में उतरती हैं तो उनकी पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है. अगर वो चुनाव नहीं लड़ती तो वह पार्टी के लिए उस जोश के साथ चुनाव प्रचार भी नहीं कर पाएंगे. ऐसे में उनके लिए धर्मसंकट वाली स्थिति बन गई है. हालांकि, उनके पास भी फारुक अब्दुल्ला की तरह दांव चलने का विकल्प है.
फारुक की चाल चल सकती हैं मुफ्ती
उमर अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर को पूर्म राज्य न बनाए जाने तक चुनाव न लड़ने का वादा किया था लेकिन उनके पिता ने उनके वादा की काट निकालते हुए खुद ही चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया और जीतने के बाद इस्तीफा देने की बात कही. इसी तरह महबूबा मुफ्ती भी अपनी बेटी को चुनावी मैदान में उतार सकती हैं. महबूबा की बेटी इल्तिजा खुलकर राजनीति में आ सकती है. वह, जम्मू-कश्मीर के उप राज्यपाल की समय-समय पर आलोचना करती रहती हैं. उनकी कार्यशैली पर सवाल उठाती रहती हैं. ऐसे में मां अपनी बेटी को विधानसभा के चुनावी मैदान में उतार सकतीं हैं.