Maharashtra Politics: महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार बड़ा उलटफेर देखने को मिल सकता है. चर्चाएं हैं कि एक साल पहले अपने ही चाचा के बगावत करके बीजेपी के साथ आए अजित पवार को बीजेपी अकेला छोड़ सकती है. इसी साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले अगर ऐसा होता है तो अजित पवार न इधर के रह जाएंगे, न उधर के. दूसरी तरफ शरद पवार का गुट दावा कर रहा है कि अजित पवार के साथ गए कई विधायक घर वापसी के जुगाड़ में लगे हुए हैं और वे शरद पवार से संपर्क साध रहे हैं.

लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में खलबली मची हुई है. शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ चुनाव लड़ने वाली भारतीय जनता पार्टी (BJP) के गठबंधन महायुति को सिर्फ 17 सीटों पर ही जीत मिली थी. चुनाव नतीजों के बाद से सबके निशाने पर एनसीपी के मुखिया अजित पवार हैं. अपने चाचा से बगावत करने और पार्टी पर कब्जा करने वाली अजित पवार की एनसीपी सिर्फ एक सीट जीत पाई थी. खुद उनकी पत्नी सुनेत्रा पवार बारामती से लोकसभा का चुनाव हार गईं. अब चर्चाएं हैं कि आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी अजित पवार से किनारा कर सकती है. बीजेपी को लगने लगा है कि अजित पवार के आने से उसे फायदा होने के बजाय नुकसान हुआ है. अगर ऐसा होता है तो अजित पवार न घर के रह जाएंगे, न घाट के. अजित पवार के लिए यह चिंता का विषय इसलिए है कि पहले ही उनके कई विधायकों के शरद पवार के संपर्क में होने की बातें कही जा रही हैं. दूसरी ओर शरद पवार से बगावत करके अजित पवार के साथ आए दिग्गज नेता छगन भुजबल भी राज्यसभा सीट को लेकर नाराजगी जता चुके हैं.

अजित पवार इन दिनों चौतरफा घिरे हुए हैं. लोकसभा चुनाव हारने वाली अपनी पत्नी सुनेत्रा पवार को अजित पवार राज्यसभा भेजने की तैयारी में हैं. छगन भुजबल ने इस पर नाराजगी जताई और साफ-साफ कह दिया कि वह पहले तो नासिक से लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन टिकट नहीं मिला. अब वह राज्यसभा जाना चाहते थे लेकिन उन्हें वहां भी नहीं भेजा जा रहा हैं. वहीं, अजित पवार कह रहे हैं कि पार्टी में सब ठीक है. इस बीच अन्ना हजारे ने अजित पवार को क्लीन चिट दिए जाने को लेकर महाराष्ट्र सरकार पर भी सवाल उठा दिए हैं.

फंस गए अजित पवार?

जून 2023 के आखिर में अजित पवार ने पाला बदल लिया था. उन्होंने एनसीपी के विधायकों के साथ एनडीए का दामन थाम लिया था और उन्हें महाराष्ट्र का डिप्टी सीएम बना दिया गया था. बाद में अजित पवार ने एनसीपी पर भी दावा ठोंक दिया और कानूनी जंग जीतकर पार्टी पर भी कब्जा जमा लिया. हालांकि, लोकसभा चुनाव में कम सीटें जीत पाने के बाद से वह निशाने पर हैं. शरद पवार गुट दावा कर रहा है कि 2023 में अजित पवार के साथ गए कई विधायक वापसी करना चाहते हैं. दरअसल, दलबदलुओं की हार दिखने के बाद शिवसेना और एनसीपी के कई नेता ऊहापोह की स्थिति में हैं.

ऐसी स्थिति में अगर अजित पवार का साथ बीजेपी भी छोड़ देती है तो उनके लिए बेहद असहज स्थिति हो जाएगी. दूसरी तरफ, कांग्रेस, शिवसेना (UBT) और एनसीपी (शरद पवार) का महा विकास अघाड़ी लोकसभा चुनाव में मिली कामयाबी के बाद से उत्साहित है और वह अब विधानसभा चुनाव भी साथ ही लड़ने की तैयारी में हैं. ऐसे में बीजेपी को भी लगता है कि अगर वह इस गठबंधन के सामने अजित पवार को लेकर चुनाव में जाती है तो उसका फायदा होने के चांस कम हैं.

क्यों हो रहा मोहभंग?

हाल ही में RSS के मुखपत्र ऑर्गनाइजर के एक लेख में भी एनसीपी के साथ बीजेपी के गठबंधन को लेकर सवाल उठाए गए थे. दरअसल, विधानसभा में शिवसेना (एकनाथ शिंदे) और बीजेपी की सरकार तो पहले से बनी हुई थी. बीजेपी को उम्मीद थी कि अजित पवार के आ जाने से उसे लोकसभा चुनाव में फायदा हो सकता है. हालांकि, नतीजे बता रहे हैं कि ऐसा नहीं हुआ. ऐसे में अब उसे अजित पवार का कोई विशेष फायदा नहीं नजर आ रहा है. दूसरी तरफ, इसकी सहानुभूति शरद पवार के गुट को मिल रही है और वह मजबूत होता जा रहा है.

इसके अलावा, महाराष्ट्र में बीजेपी-आरएसएस के मुख्य मुद्दे ही पवार परिवार के खिलाफ रहे हैं. ऐसे में दोनों के साथ आ जाने से पार्टी के कार्यकर्ता ही असहज स्थिति में आ जाते हैं. यही वजह है कि बीजेपी अब विधानसभा चुनाव में सिर्फ शिवसेना के साथ जाने का प्लान बना रही है. हालांकि, अभी तक इसके बारे में पार्टी की ओर से औपचारिक तौर पर कुछ भी नहीं कहा गया है.

अजित पवार भी नाराज!

दूसरी तरफ, अजित पवार भी बीजेपी से नाराज ही चल रहे हैं. 9 जून को हुए शपथ ग्रहण से ठीक पहले खबरें आईं कि एनसीपी का कोई नेता मंत्री नहीं बन रहा है. इसके बारे में खुद अजित पवार ने कहा कि उन्हें राज्यमंत्री का ऑफर मिल रहा था लेकिन एनसीपी के नेता पहले कैबिनेट मंत्री रहे हैं, ऐसे में उसे यह पद स्वीकार नहीं है. एक बात यह भी कही गई कि प्रफुल्ल पटेल और सुनील तटकरे के आपसी विवाद की वजह से ही कोई मंत्री नहीं बन पाया और बीजेपी ने अजित पवार को साफ कह दिया कि वह पहले अपनी पार्टी के झगड़े को सुलझा लें.

अब बीजेपी के सामने आगे कुआं, पीछे खाई वाली स्थिति है. एक तरफ वह अजित पवार को भी साथ रखना चाहती है लेकिन ऐसी स्थिति में उसके अपने कार्यकर्ता और नेता नाराज हो रहे हैं. दूसरी तरफ, वह सिर्फ एकनाथ शिंदे को लेकर चुनाव में उतरने से भी कतरा रही है क्योंकि भले ही शिवसेना लोकसभा में कुछ सीटें जीत गई हो, विधानसभा में स्थिति और चिंताजनक हो सकती है.

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