Why hell-bent on killing 10 lakh Indian crows: दक्षिण एशिया में आसानी से नजर आने वाले कौवों को दशकों से अफ्रीकी देशों में घुसपैठ करने वाली प्रजाति के रूप में देखा गया है जो किसी जीवाणु की तरह इकोसिस्टम को नुकसान पहुंचाती है. अफ्रीकी देशों में ये एलियन सी नजर आने वाली प्रजाति वहां के वन्यजीवों पर दावत उड़ाती है तो वहीं टूरिस्ट्स से खाना छीन लेती है. पोल्ट्री फॉर्म से चूजों को चुराने से लेकर हवाई अड्डों पर पक्षियों के बढ़ते हमले का खतरा पैदा करती है. ये कोई और नहीं भारतीय कौवे हैं जिनकी लंबाई लगभग 40 सेमी है, ऐसा माना जाता है कि यह एक छोटे मानव बच्चे जितना स्मार्ट है और दशकों से लोगों को दीवार पर चढ़ा रहा है.

Why hell-bent on killing 10 lakh Indian crows: आम तौर पर भारत और दक्षिण एशिया में कौआ आसानी से पनपता नजर आता है, लेकिन केन्या सरकार अगले छह महीनों में अनुमानित दस लाख कौवों का सफाया करने की योजना बना रही है.

घरेलू कौवे या कॉमन क्रो (कोरवस स्प्लेंडेंस) नामक पक्षी प्रजाति को दशकों से उपद्रव के रूप में देखे जाने के बाद केन्या सरकार की ओर से एक invasive alien species (घुसपैठ करने वाली विदेशी प्रजाति) घोषित कर दिया गया है. उन्हें खत्म करने का सरकार का फैसला देश के तट के साथ होटल व्यवसायियों और किसानों की शिकायतों से प्रेरित हुआ है, जहां यह प्रजाति प्रमुख है.

कचरा नियंत्रण के लिए लाए गए पर अब खुद बने समस्या

यह कहानी अल्फ्रेड हिचकॉक की फिल्म “द बर्ड्स” की याद दिलाती है, जहां बेकाबू परिस्थितियों में पक्षी मानव सभ्यता पर हमला कर देते हैं. हालांकि, केन्या का मामला थोड़ा अलग है. यहां भारतीय कौए को सालों पहले कचरा नियंत्रण के लिए लाया गया था, लेकिन अब ये खुद एक बड़े संकट में बदल गया है.

इन चालाक पक्षियों ने केन्या को अपना नया ठिकाना बना लिया है. ये स्थानीय वन्यजीवों को अपना शिकार बनाते हैं, पर्यटकों के खाने पर झपट्टा मारते हैं, पोल्ट्री फार्मों में तबाही मचाते हैं और हवाई अड्डों पर विमानों से टकराने का खतरा पैदा करते हैं.

साल के अंत तक खत्म करेंगे 10 लाख कौवे

केन्या सरकार इस समस्या से निजात पाने के लिए मन बना चुकी है. उन्होंने साल के अंत तक दस लाख कौवों को खत्म करने की योजना बनाई है. इसके लिए विभिन्न तरीकों पर विचार किया जा रहा है, जिनमें से कुछ काफी विवादास्पद भी हैं.

एक रिपोर्ट के अनुसार, केन्या के होटल व्यवसायियों को इस अभियान में शामिल करने के लिए उन्हें लाइसेंसी जहर आयात करने की अनुमति दी गई है. वहीं कुछ किसान पारंपरिक लारसेन ट्रैप (एक पिंजरे जैसा उपकरण जिसे फुसलाने की मदद से जीवित पक्षियों को फंसाया जाता है) का इस्तेमाल कर रहे हैं. कुछ रिजॉर्ट्स ने तो कौवों को दूर भगाने के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित कर्मचारियों को भी रखा है.

मोम्बासा में है कौवों की सबसे ज्यादा तादाद

मोम्बासा केन्या का वो तटीय शहर है, जहां कौवों का सबसे ज्यादा जमावड़ा है. माना जाता है कि जहाजों या पड़ोसी ज़ांज़ीबार से ये 1947 में यहां पहुंची थीं. तब से लेकर अब तक ये 700 किलोमीटर दूर तक फैल चुकी हैं और यहां तक कि संरक्षित अराबुको सोकोके वन में भी इनके घुसपैठ की आशंका है. इससे भी बड़ी चिंता यह है कि ये वहां के मूल पक्षियों को खदेड़ देंगी, जिससे कीटों का प्रकोप बढ़ सकता है.

केन्या वन्यजीव सेवा, आतिथ्य उद्योग के प्रतिनिधियों, पशु चिकित्सकों और A Rocha जैसे संरक्षण समूहों के साथ हाल ही में हुई एक बैठक में इस विदेशी प्रजाति को खत्म करने की कार्य योजना पर चर्चा की गई. चिंता इस बात की भी है कि ये कौए बीमारी फैलाने में भी भूमिका निभा सकती हैं.

केन्या में चल रहा क्रोज नो मोर का अभियान

एरिक किनोटी, जो A Rocha Kenya में “Crows No More!” पहल का नेतृत्व करते हैं, का कहना है कि केन्या के तट के अलावा, दक्षिण अफ्रीका के केप टाउन और जिबूती और काहिरा में भी भारतीय कौआ देखी गई हैं. उनका सबसे बड़ा डर यह है कि ये पक्षी नैरोबी शहर में भी पहुंच जाएं.

उन्होंने कहा, “हम उन्हें नैरोबी नहीं पहुंचने दे सकते क्योंकि वे वहां के मूल जीवों के लिए, खासकर नैरोबी राष्ट्रीय उद्यान में, एक बड़ी समस्या पैदा कर देंगी.

इस जहर से बनाया जाएगा निशाना

किनोटी के मुताबिक कौवों को खत्म करने के लिए Starlicide नामक एक विशेष जहर का इस्तेमाल किया जाएगा, जिसे मूल रूप से अमेरिका में यूरोपीय स्टारलिंग्स को खत्म करने के लिए बनाया गया था. यह जहर कौवों को खाने के 10 से 12 घंटे बाद असर करता है और मृत कौवों को छूने से कोई खतरा नहीं होता क्योंकि Starlicide कौआ के मरने से पहले ही खत्म हो जाता है.

दूसरी ओर, भारत में कौआ एक महत्वपूर्ण प्रजाति मानी जाती है. आशुत विस्वनाथन, जो नेचर कंजर्वेशन फाउंडेशन में बर्ड मॉनिटरिंग टीम के साथ काम करते हैं, बताते हैं कि कौवे की आबादी स्थिर है और इसका सांस्कृतिक महत्व भी है. जहाजों के जरिए भारतीय कौवे दुनिया के कई हिस्सों में फैल चुके हैं. विस्वनाथन कहते हैं कि कुछ जगहों पर इन्हें जानबूझकर भी लाया गया था. यह पक्षी अब यूरोप से पश्चिम एशिया, ऑस्ट्रेलिया से अमेरिका तक हर जगह पाया जाता है.

पक्षियों का भी हो रहा है ग्लोबलाइजेशन

वैश्विक व्यापार के कारण दुनियाभर में कई विदेशी प्रजातियां तेजी से फैल रही हैं. 2017 में नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार, 1970 और 2014 के बीच पहली बार देखी गई विदेशी प्रजातियों में से एक तिहाई का रिकॉर्ड किया गया था. अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि समस्या से निपटने के लिए कई अंतर्राष्ट्रीय समझौतों और कानूनों के बावजूद यह समस्या लगातार बढ़ रही है.

यह शोध 16,926 विदेशी प्रजातियों के आंकड़ों पर आधारित है. शोधकर्ताओं का कहना है कि 19वीं शताब्दी में यूरोपीय उपनिवेशवाद और 20वीं शताब्दी में व्यापार में तेजी के कारण विदेशी प्रजातियों का तेजी से फैलाव हुआ है.

कैसे बनेगा नेचर का बैलेंस

IUCN के ग्लोबल इनवेसिव स्पीशीज डेटाबेस में विशाल अफ्रीकी भूमि घोंघा, एशियाई चमकदार कौआ, कॉमन कौआ, लैंटाना झाड़ियां, गन्ना का टोड और एशियाई बाघ मच्छर जैसी कई विदेशी प्रजातियां शामिल हैं.

हमें यह सोचने की जरूरत है कि हम मनुष्यों के रूप में विकास के नाम पर प्रकृति के संतुलन को कैसे बिगाड़ रहे हैं. केन्या में कौआ का प्रकोप इस बात का एक उदाहरण है. हमें सतर्क रहने और ऐसी गलतियों को दोबारा न करने का संकल्प लेना चाहिए.

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