भारत में सांसदों और विधायकों को लेकर भी नियम और कानून है. अगर कोई भी व्यक्ति विधानसभा, लोकसभा या राज्यसभा का सदस्य है तो वह केंद्र या राज्य सरकार में कोई भी लाभ का पद ग्रहण नहीं कर सकता है. अगर वह कोई लाभ का पद ग्रहण करता है तो चुनाव आयोग उस सदस्य को अयोग्य ठहरा सकता है. केरल से भाजपा सांसद सुरेश गोपी जो अभिनेता हैं उन्होंने कहा कि वह किसी भी इवेंट में जाने के लिए पहले की तरह फीस लेंगे और इसका इस्तेमाल वह सामाजिक कार्यों में करेंगे. अब क्या यह लाभ का पद है कि नहीं आइए जानते हैं.

अभिनेता से नेता बने सुरेश गोपी लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद सिर्फ केरल ही नहीं पूरे देश में पहचाने जाने लगे हैं. उन्होंने केरल में पहली बार कमल खिलाया. भाजपा की टिकट पर त्रिशूर सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत गए. जीतने पर बीजेपी ने उन्हें केंद्रीय पर्यटन और पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस राज्य मंत्री भी बना दिया. उन्होंने कहा कि भले ही वह राजनीति में आ गए हैं लेकिन वह एक्टिंग नहीं छोड़ेंगे. एक्टिंग और इवेंट में जाने से जो कमाई होगी उसका इस्तेमाल सामाजिक कार्यों के लिए करेंगे.

सुरेश गोपी ने कहा कि वह अन्य अभिनेताओं की तरह कार्यक्रमों के उद्घाटन के लिए पैसे लेते रहेंगे. गुरुवार को अपने निर्वाचन क्षेत्र में भाजपा के एक स्वागत समारोह में गोपी ने कहा, “जब मैं किसी कार्यक्रम में जाता हूं, तो यह मत सोचिए कि मैं सांसद के रूप में इसका उद्घाटन करूंगा. मैं एक अभिनेता के रूप में आऊंगा और मैं अपने सहयोगियों की तरह फीस लूंगा.”

सांसद नहीं धारण कर सकता लाभ का पद

अब ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या आखिर कोई सांसद  अन्य पेशे भी अपना सकते हैं? इसके लिए क्या कानून और नियम हैं आइए जानते हैं.

संविधान और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के कुछ प्रावधान इस संबंध में सांसदों के आचरण को नियंत्रित करते हैं. किसी सांसद के लिए अयोग्यता के मूल मानदंड संविधान के अनुच्छेद 102 में तथा किसी विधायक के लिए अनुच्छेद 191 में निर्धारित किए गए हैं.

अनुच्छेद 102 में कहा गया है कि यदि कोई सांसद सदस्य भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन कोई लाभ का पद धारण करता है तो वह अयोग्य माना जाएगा. सिवाय उस पद के जिसके धारक को संसद ने कानून द्वारा अयोग्य घोषित नहीं किया है.

2006 में जया बच्चन को अयोग्य करार दिया गया था

2006 में चुनाव आयोग ने जया बच्चन को राज्यसभा से अयोग्य ठहराया था. वह सांसद रहते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश फिल्म विकास निगम की चेयरमैन भी थीं जिसे लाभ का पद करार दिया गया था.

इस फैसले को उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को बरकरार रखते हुए कहा था, “यह तय करने के लिए कि कोई व्यक्ति लाभ का पद धारण कर रहा है या नहीं, प्रासंगिक यह है कि क्या वह पद लाभ या आर्थिक फायदा देने में सक्षम है न कि यह कि क्या व्यक्ति ने वास्तव में आर्थिक लाभ प्राप्त किया है.”   

2018 में सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया था ये फैसले 

मार्च 2017 में, दिल्ली भाजपा के नेता और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने सांसदों द्वारा वकालत जारी रखने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. उन्होंने याचिका में कहा था कि अगर सांसदों को वकालत करने की अनुमति दी गई, तो वे अपने क्लाइंट से फीस लेंगे और साथ ही वह सांसद का वेतन भी उठाएंगे, जो कि “पेशेवर कदाचार” के बराबर होगा.

इस पर सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में अपने आदेश  कहा था कि विधायक या संसद “पूर्णकालिक वेतन भोगी कर्मचारी” नहीं हैं जो अधिवक्ता विधायक बन जाते हैं वे अपना कानूनी अभ्यास जारी रख सकते हैं क्योंकि अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के तहत वह वकालत कर सकते हैं. उन्हें रोकने के लिए ऐसा कोई कानून नहीं है. 

यही बात सांसद सुरेश गोपी पर भी लागू होती है. वह एक्टर हैं. उन्हें हमेशा तो फिल्में मिलंगे नहीं और यह भी नहीं है कि उन्हें हर महीने पैसे मिलेंगे. 

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