क्या सांसदों को सरकारी आवास देना जरूरी? जानें सांसदों और मंत्रियों को कैसे आवंटित होता है घर ?

72 मंत्रियों के शपथ ग्रहण समारोह के बाद अब लोकसभा चुनाव जीतकर आए सभी सांसदों का शपथ ग्रहण होना है. इस के बाद इन सभी सांसदों और मंत्रियों को सरकारी घर, बंगला या कोठी आवंटित की जाएगी. सभी सांसदों और दिल्ली के लुटियंस जोन में ही घर दिया जाता है. घर की देखरेख का पूरा खर्च सरकार उठाती है.

प्रधामंत्री मोदी और 72 मंत्री के शपथ ग्रहण समारोह के बाद अब 18वीं लोकसभा के लिए चुने गए सांसदों का शपथ ग्रहण होना है. जिन मंत्रियों के पास पहले से सरकारी आवास हैं उन्हें छोड़कर नए मंत्रियों और सांसदों को दिल्ली में सरकारी आवास मुहैया कराए जाएंगे. ऐसे में आज हम जानेंगे कि सांसदों और मंत्रियों को सरकारी आवास कैसे आवंटित होता है?

बता दें कि सभी सांसदों और मंत्रियों को दिल्ली के लुटियंस जोन में आवास आवंटित किए जाते हैं. इस सरकारी आवासों में बंगले, कोठियां और फ्लैट हो सकते हैं. तमाम सांसदों को उनकी वरिष्ठता के आधार पर सरकारी आवासों का आवंटन होता है. सांसदों को आवास के आवंटन के लिए जनरल पूर रेजिडेंशियल एकोमोडेशन एक्ट के नियमों और शर्तों का पालन किया जाता है.

क्या सांसदों को सरकारी आवास देना जरूरी है

दरअसल, केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के तहत साल 1922 में ‘डायरेक्टरेट ऑफ स्टेटस’ नाम का एक विभाग बनाया गया था. इस विभाग का काम पूरे देश में केंद्र सरकार की संपत्तियों की देखभाल करना होता है.  ‘डायरेक्टरेट ऑफ स्टेटस’ विभाग के तहत ही सभी सांसदों को आवास मुहैया कराए जाते हैं. इस विभाग के साथ लोकसभा और राज्यसभा की आवासीय समिति भी सांसदों को आवास दिलाने में मुख्य भूमिका निभाती है. आवास का आवंटन जनरल पूल रेजिडेंशियल एकोमोडेशन एक्ट के तहत किया जाता है.

दिल्ली के लुटियंस जोन में दिए जाते हैं आवास

सांसदों को दिल्ली के लुटियंस जोन में आवास मुहैया कराए जाते हैं. कुल सरकारी आवासों की संख्या 3,959 बताई जाती है जिनमें से लोकसभा सदस्यों के लिए कुल 517 आवास उपलब्ध हैं जिनमें 159 बंगले और 37  ट्विन फ्लैट, 193 सिंगल फ्लैट, बहुमंजिला इमारतों में 96 फ्लैट और सिंगल रेगुलर हाउस की संख्या 32 है.

वरिष्ठता के आधार पर मिलते हैं बंगले

सभी सांसदों को उनकी वरिष्ठता के आधार पर बंगले दिए जाते हैं. टाइप-I से टाइप-IV तक के आवास सबसे छोटे होते हैं. ये आवास केंद्रीय कर्मचारियों और अधिकारियों को दिए जाते हैं. वहीं टाइप-IV  से टाइप- VIII तक के आवास और बंगले केंद्रीय मंत्रियों, राज्य मंत्रियों और सांसदों को आवंटित किए जाते हैं.

जो सांसद पहली बार चुना जाता है उसे टाइप-V बंगले दिए जाते हैं. एक से अधिक बार चुने गए सांसदों को टाइप-VII और टाइप-VII बंगला भी आवंटित किया जा सकता है. वहीं  टाइप-VIII बंगला कैबिनेट मंत्रियों, सुप्रीम कोर्ट के जज, पूर्व राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति-प्रधानमंत्री और वित्त आयोग के अध्यक्ष को आवंटित किया जाता है.

टाइप-VIII बंगला सबसे शानदार

टाइप-VIII सबसे अच्छी कैटेगिरी के माने जाते हैं. ये बंगले करीब 3 एकड़ क्षेत्रफल में फैला होता है. इसकी मेन बिल्डिंग में 5 बेडरूम, एक हॉल, एक डायनिंग रूम और एक स्टडी रूम होता है. यही नहीं मेहमान के लिए बंगले में एक गेस्ट रूम और नौकर के के लिए एक सर्वेंट क्वार्टर भी होता है. इस तरह के ज्यादातर बंगल जनपथ, त्यागराज मार्ग, अकबर रोड, कृष्णा मेनन मार्ग, सफदरजंग रोड, मोतीलाल नेहरू मार्ग और तुगलक रोड पर बने हैं.

किस बंगले में रहते हैं राहुल गांधी

टाइप-VIII के बाद टाइप-VII के बंगले सबसे शानदार होते हैं. ये बंगले डेढ़ एकड़ क्षेत्रफल में फैले होते हैं. इन बंगलों में 4 बेडरूम होते हैं. आम तौर पर ये बंगले राज्य मंत्रियों, दिल्ली हाईकोर्ट के जजों और 5 बार के सांसदों को दिया जाता है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी का बंगला 12, तुगलक लेन इसी टाइप का बंगला है.

पहली बार सांसद चुने जाने पर कौन सा बंगला

जो नेता पहली बार सांसद चुने जाते हैं उन्हें टाइप-V बंगला दिया जाता है. वहीं अगर कोई सांसद पहले विधायक या मंत्री रहा हो तो उसे टाइप-VI बंगला दिया जाता है. जिन सांसदों को बंगला नहीं मिल पाता वो होटलों में ठहरते हैं जिनका सारा खर्च सरकार उठाती है.

बंगलों की देखरेख सरकारी खर्चे पर 

सांसदों और मंत्रियों को आवंटित किये गए बंगलों में मुफ्त बिजली और पानी सरकार की तरफ से ही मुहैया कराया जाता है. सरकारी बंगले की पूरी देखभाल सरकारी खर्चे पर होती है. हालांकि अगर बंगले की देखरेख का खर्च 30 हजार रुपए से ज्यादा है तो उसके लिए शहरी विकास मंत्रालय से अप्रूवल लेना पड़ता है. वहीं 30 हजार या इससे कम खर्च होने पर खुद आवास समिति अप्रूवल दे देती है.

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