अजीत पावर के तेवर पडे नर्म, क्या बेटे के लिए बारामती सीट छोड़ देंगे पवार

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मीडिया से बात करते हुए अजित पवार ने कहा कि बारामती से उनके बेटे की संभावित उम्मीदवारी जनता और पार्टी कार्यकर्ताओं की मांग पर निर्भर करेगी. उन्होंने कहा, मुझे चुनाव लड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं है. मैंने सात से आठ चुनाव लड़े हैं.

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता अजीत पावर के तेवर कुछ नर्म पड़े हैं. आगामी विधानसभा चुनाव बारामती से नहीं लड़ने और इसके बजाय अपने बेटे जय पवार को इस पारंपरिक गढ़ से चुनाव लड़ाने का संकेत दिया है. उन्होंने अंतिम निर्णय पार्टी कार्यकर्ताओं और एनसीपी के संसदीय बोर्ड पर छोड़ दिया है. मीडिया से बात करते हुए अजीत पवार ने कहा कि उनके बेटे की उम्मीदवारी जनता और पार्टी तय करेगी. 

मीडिया से बात करते हुए अजित पवार ने कहा कि बारामती से उनके बेटे की संभावित उम्मीदवारी जनता और पार्टी कार्यकर्ताओं की मांग पर निर्भर करेगी. उन्होंने कहा, मुझे चुनाव लड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं है. मैंने सात से आठ चुनाव लड़े हैं. अगर जय के बारे में जनता और पार्टी कार्यकर्ताओं की मांग है, तो एनसीपी का संसदीय बोर्ड फैसला लेगा. जो भी फैसला होगा, हम उसका सम्मान करेंगे.

बारामती नहीं तो कहां से चुनाव लड़ेंगे अजीत? 

तो, अजित पवार किस निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ने की योजना बना रहे हैं? रिपोर्ट्स के अनुसार, वह अहमदनगर जिले के कर्जत-जामखेड निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़कर एक रणनीतिक कदम उठा सकते हैं. यह मौजूदा विधायक रोहित पवार के लिए एक बड़ी चुनौती होगी, जिन्होंने पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के राम शिंदे को हराकर यह सीट जीती थी.

अजीत पवार के कर्जत-जामखेड से चुनाव लड़ने की संभावना रोहित पवार के एक ट्वीट के बाद बढ़ गई, जो अजीत पवार द्वारा एक साक्षात्कार में सार्वजनिक रूप से स्वीकार किए जाने के बाद आया था कि बारामती में सुप्रिया सुले के खिलाफ अपनी पत्नी को मैदान में उतारना एक गलती थी.

फैसला दादा का नहीं था

अजीत पवार ने माना कि बारामती से सुप्रिया सुले के खिलाफ पत्नी को चुनाव में उतारना गलती थी. इसपर प्रतिक्रिया देते हुए रोहित पवार ने कहा, मुझे यकीन था कि सुप्रिया ताई के खिलाफ सुनेत्रा काकी को मैदान में उतारने का फैसला दादा का नहीं था. आपने एक इंटरव्यू में माना है कि यह एक गलती थी, लेकिन आपके सहयोगी कहते रहते हैं कि यह दादा का फैसला था. हालांकि आप इसे गलती कहते हैं, लेकिन यह वास्तव में दिल्ली में बैठे गुजरात के नेताओं के दबाव के कारण था.

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