जेजेपी और एएसपी का गठबंधन यू हीं नहीं हुआ है. दोनों की कोशिश राज्य के जाट और दलित वोटर को साधने की है. जेजेपी को राज्य के जाटों का समर्थन मिलता रहा है जबकि एएसपी को राज्य के दलितों से समर्थन मिलने की उम्मीद है.
Haryana Assembly Elections: हरियाणा के दलित वोट बैंक को पाने के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों में जबरदस्त खींचातान चल रही है. इसी बीच अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही जननायक जनता पार्टी (JJP) ने एक नया दांव चलकर सभी को चौंका दिया है. JJP ने चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी (कांशी राम) के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने का फैसला किया है. हरियाणा की जो लड़ाई अब तक कांग्रेस और बीजेपी के बीच मानी जा रही थी वह जेजेपी के इस फैसले के बाद त्रिकोणीय हो गई है.
किसके साथ जाएगा 21% दलित
हरियाणा में दलित वोटर 21% हैं. डील के मुताबिक जेजेपी 70 और ASP 20 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में दुष्यंत और आजाद ने एक साथ मिलकर चुनाव लड़ने का ऐलान किया. दुष्यंत ने यह भी वादा किया कि उनका यह गठबंधन 40-50 सालों के लिए हुआ है और कहा कि वे दोनों साथ मिलकर हरियाणा के दबे कुचले वर्ग और किसान के उत्थान के लिए काम करेंगे.
बता दें कि 2019 के विधानसभा चुनाव में जेजेपी को 10 सीटों पर जीत मिली थी और वह किंगमेकर बनकर उभरी थी. जेजेपी ने बीजेपी को समर्थन दिया था और दुष्यंत चौटाला डिप्टी सीएम बनाए गए. हालांकि इस साल की शुरुआत में जब से दोनों पार्टियों के रास्ते अलग हुए तब से जेजेपी का लगातार पतन हो रहा है. जेजेपी के सात विधायक पार्टी छोड़ चुके हैं जिनमें से एक कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं और दो के बीजेपी में जाने की उम्मीद है.
जाट-दलित के दम पर बाजी मारने की तैयारी
जेजेपी और एएसपी का गठबंधन यू हीं नहीं हुआ है. दोनों की कोशिश राज्य के जाट और दलित वोटर को साधने की है. जेजेपी को राज्य के जाटों का समर्थन मिलता रहा है जबकि एएसपी को राज्य के दलितों से समर्थन मिलने की उम्मीद है. हरियाणा की आबादी में 26% जाट हैं.
क्या ASP के साथ आने से JJP को होगा फायदा
2019 के चुनाव में जेजेपी ने दलित आरक्षित 4 सीटों पर जीत दर्ज की थी. इतिहास के पन्ने पलटने पर पता चलता है कि हरियाणा की दलित-आरक्षित सीटें ज्यादातर कांग्रेस और बीजेपी ने ही जीती हैं. 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 17 और कांग्रेस ने 7 दलित सीटें जीती थीं जबकि जेजेपी ने चार और एक सीट निर्दलीय उम्मीदवार ने जीती थीं.
हालांकि हाल की के लोकसभा चुनाव में बीजेपी दोनों आरक्षित सीटें अंबाला और सिरसा को हार गई थी. दलितों में इस बात का भय था कि बीजेपी संविधान को बदल सकती है. इसके अलावा बीजेपी के सामने इस बार कई और बड़ी चुनौतियां भी हैं. बीजेपी को राज्य के किसानों और जाटों के विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है. इसके अलावा बीजेपी अग्निपथ योजना और पहलवानों के विरोध प्रदर्शन को लेकर भी घिरी हुई है. ऐसे में दलित वोट बैंक इस बार हरियाणा की राजनीति में एक बेहद अहम भूमिका निभा सकता है.