क्यों कश्मीर के लिए अहम हैं राम माधव? अचानक पार्टी को फिर आ गई याद? समझे इनसाइड स्टोरी

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जम्मू और कश्मीर में संगठन को दोबारा मजबूत करने की जिम्मेदारी एक बार फिर राम माधव के कंधों पर आ गई है. राम माधव, संगठन और संघ दोनों के पसंदीदा नेता रहे हैं. उन्हें हर मुश्किल वक्त में पार्टी को संभालना आता है. अब एक बार फिर घाटी में उन्हें उतारा गया है. पार्टी के चुनाव प्रभारी हैं. बीजेपी ने किस रणनीति के तहत उन्हें दोबारा ये जिम्मेदारी दी है, आइए समझते हैं.

जम्मू-कश्मीर में करीब 1 दशक के बाद दोबारा विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. भारतीय जनता पार्टी ने एक बार फिर घाटी में अपने ‘खेवनहार’ राम माधव को चुनावी मैदान में उतार दिया है. वे राज्य के चुनाव प्रभारी बनाए गए हैं. राम माधव, श्रीनगर में हैं और ऐलान होने के 24 घंटों के भीतर ही रणनीति बनाने में जुट गए हैं. वे घाटी की रग-रग से वाकिफ हैं. मौजूदा नेताओं में कश्मीर पर पकड़ रखने वाला, शायद ही कोई ऐसा नेता पार्टी में, जैसे राम माधव हैं. उनके संपर्क स्थानीय लोगों से हैं, उन्हें पता है कि विधानसभा चुनावों में किस सीट पर, कैसे सियासी समीकरण बनते हैं.

राम माधव को जैसे ही जिम्मेदारी मिली, वे स्थानीय नेताओं के संपर्क में आ गए. श्रीनगर में उन्होंने कार्यकर्ताओं की बैठक बुलाई, स्थानीय नेताओं से मुलाकात की. राम माधव का राजनीतिक करियर भी बीते 1 दशक में कई उतार चढ़ाव से गुजरा है. स्थिरता बस इतनी सी रही है कि उनका सियासी कद, कभी नहीं घटा. वे बीजेपी के आधार स्तंभ वाले नेताओं में से एक रहे हैं, चाहे वे संघ में हों, या संगठन में.

जम्मू और कश्मीर के स्थानीय नेताओं का मानना है कि उनका लौटना, घाटी के कार्यकर्ताओं में जोश भर देगा. साल 2014 में वे जिस तरह से घाटी में सक्रिय थे, कुछ उसी अंदाज में वे दोबारा घाटी लौटे हैं. राम माधव के साथ-साथ केंद्रीय मंत्री जी किशन रेड्डी भी इस चुनाव में पर्यवेक्षक की भूमिका में हैं. 

क्यों कश्मीर के लिए जरूरी हैं राम माधव? वजहें जान लीजिए

घाटी की जरूरत समझते हैं राम माधव

साल 2014 में बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव रहे राम माधव, बीजेपी की विचारधारा को आगे बढ़ाने वाले नेताओं में शुमार रहे हैं. वे बीजेपी के चर्चित चेहरे हैं. राम माधव, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) के लोकप्रिय नेता रहे हैं. कश्मीर चुनाव के लिए उन्हें संगठन में भेजा गया. उन्होंने कश्मीर के चुनाव के बाद की पटकथा लिखी. उन्होंने घाटी में ऐसा बेमेल गठबंधन करा दिया था, जिसकी कोई कल्पना नहीं कर सकता था. धुर राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी और बिलकुल अलग धारा में चलने वाली पार्टी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) का बेमेल गठबंधन, राम माधव ने ही कराया था. 

कश्मीर में कदम जमाया, जम्मू फतह किया 

बीजेपी नेताओं का एक धड़ा मानता है कि घाटी में जमीनी स्तर पर बीजेपी को कम समर्थन मिलने की कई वजहें रहीं. उनमें एक वजह, संविधान के अनुच्छेद 370 और 35ए का हटना भी है. यह कश्मीर को जमीन, निवास और रोजगार को लेकर विशेषाधिकार देता था. यह अनुच्छेद, कश्मीर को विशेष शक्तियां देता था और भारत संघ के नियमों को न मानने की स्वतंत्रता भी देता था. राम माधव, विसंगतियों के बाद भी बीजेपी और कश्मीरियों के बीच पुल की तरह रहे हैं. उन्होंने बेहद सधे कदमों से काम किया था. बीजेपी भले ही कश्मीर संभाग में कोई सीट न जीत पाई हो लेकिन जम्मू की 25 सीटें जीत ली थी. वह सरकार बनाने की स्थिति में आ गई थी. साल 2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 25 सीटें जीत ली थी, पीडीपी के पास 28 सीटें थीं, कांग्रेस के पास 12 और नेशनल कॉन्फ्रेंस के पास 15 सीटें थीं.  

करा चुके हैं बेमेल गठबंधन

बीजेपी और पीडीपी का वैचारिक स्तर पर कोई मेल नहीं था. यह सरकार, मजबूरी की सरकार थी लेकिन कई दिन, कुशलतापूर्वक चली. तत्कालीन मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की मौत हुई तो गठबंधन सरकार चलाने में मुश्किलें आने लगीं. उनकी विचारधारा बेहद अलग थी, जिससे बीजेपी तालमेल नहीं बिठा पाई. यह समझौते की सरकार, साल 2018 में गिर गई. राम माधव, सितंबर 2020 में महासचिव भी नहीं रहे और वापस राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ में लौट गए. वे राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य रहे. 

राम माधव कश्मीर में दोबारा क्यों आए?

राम माधव के भरोसे, घाटी में बीजेपी फिर कमाल करना चाहती है. उनके संबंध विरोधियों से भी अच्छे हैं. वे अटल बिहार बाजपेयी की परंपरा के नेता हैं, जिन्हें दलगत स्तर पर समन्वयन करने आता है. राम माधव, धारा प्रवाह बोलते हैं, सोशल मीडिया से लेकर राष्ट्रीय मीडिया तक, लोग उन्हें सुनते हैं और उनके समर्थकों की लिस्ट बड़ी है. बीजेपी इसे भुनाना चाहती है. राम माधव, अनुच्छेद 370 के विरोधी रहे हैं. केंद्र शासित प्रदेश में यह आम सहमति है कि बीजेपी ने अनुच्छेद 370 के उल्लंघन के लिए संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन किया है. अब अचानक से उन्हें अहम जिम्मेदारी दी गई है, जिसके बाद घाटी के लोगों को उन्हें समझाने की बड़ी जिम्मेदारी मिली है.

राम माधव का काम क्या होगा?

राम माधव न केवल पार्टी के भीतर, सामंजस्य बैठाएंगे, बल्कि उन क्षेत्रिय क्षत्रपों के संपर्क में भी रहेंगे, जो घाटी में प्रभावी हैं. वे कश्मीर संभाग पर ध्यान देंगे और पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस से अलग पार्टियों को जोड़ने की कोशिश करेंगे. साल 2024 के लोकसभा चुनावों के नतीजों ने पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस के बारे में एक धारड़ा तो तोड़ दी है कि अब घाटी को परिवार चला पाएंगे. दोनों दलों को जनता ने नकारा है. सज्जाद लोन की पीपुल्स पार्टी, अल्ताफ बुखारी के नेतृत्व वाली अपनीपार्टी और गुलाम नबी आजाद की डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी, अब नई पार्टियां हैं, जिन्हें कश्मीरी आवाम ‘परिवारवादी पार्टियों’ के विकल्प के तौर पर देख रही है. राम माधव का काम इन्हीं दलों को साधना है. 

कश्मीर का क्या है नया सियासी समीकरण?

2022 के परिसीमन के बाद जम्मू में कुल 43 विधानसभा सीटे हैं. इसे बीजेपी का गढ़ माना जाता है. कश्मीर संभाग में 47 सीटे हैं. 21 सीटें, पाकिस्तान अधिकृत जम्मू और कश्मीर की हैं. अनुसूचित जाति के लिए 7 सीटें और अनुसूचित जनजाति के लिए 9 सीटें आरक्षित हैं. यह पहली बार हो रहा है. कश्मीर संभाग, मुस्लिम बाहुल है. अनुच्छेद 370 के बाद यह बीजेपी की बड़ी परीक्षा है, जिसे पार कराने की जिम्मेदारी राम माधव के कंधों पर है. 

राम माधव की चुनौतियां क्या हैं?

राम माधव, सर्वस्वीकार्य नेता हैं. वे किसी भी समुदाय के लिए कर्कश राजनेता की छवि नहीं रखते हैं. वे उदारवादी नेता हैं, जिन्हें सामंजस्य बिठाने वाला नेता कहा जाता है. एक केंद्र शासित प्रदेश के तौर पर अगर यहां चुनाव भी हुए तो किसी भी दल को बहुमत मिलने से रहा. ऐसे में बिना जोड़तोड़ के सरकार नहीं बनेगी. राम माधव की चुनौती है कि किसी भी स्थिति में कश्मीर पर शासन किया जाए. पार्टी अपनी विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए यह कदम उठाएगी. 

वोटरों को क्या समझाएंगे राम माधव? क्या BJP से नाराज थे?

राम माधव संगठन से नाराज नहीं थे, वे संघ में लौट गए थे. उनके पास राष्ट्रीय कार्यकारिणी की जिम्मेदारियां थीं, जिन्हें वे बैक डोर से सुलझा रहे थे. राम माधव, मुखर और बड़े नेता हैं. उन्हें बीजेपी नाराज कभी नहीं करना चाहेगी. वे कश्मीर में बेहतरीन काम कर चुके हैं, उन्हें दोबारा यही जिम्मेदारी दी गई है. कश्मीर में लगातार बढ़ रहे आतंकी हमलों के बीच, चुनाव कराना भी एक चुनौती है. राम माधव के सिर पर जिम्मेदारी ये है कि कैसे कश्मीर को लोगों को भरोसा दिलाया जाए कि हिंसा से सुंदर रास्ता, लोकतंत्र का है, सरकार विकास करेगी और लोगों को विकासवादी सरकार चुननी चाहिए.

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