वर्ष भर लावारिश लाशों का अंतिम संस्कार करने के बाद लोगों ने किया सामूहिक पितृ विसर्जन

अब तक सैकड़ों लाशों के मोक्ष के लिए विधि विधान पूर्वक किया पूजन

आजमगढ़/संसद वाणी : पूर्वज पितृ यानि हमारे मृत पूर्वजों का तर्पण करवाना हिन्दू धर्म की एक बहुत प्राचीन प्रथा है। हिन्दू धर्म में श्राद्ध पक्ष के सोलह दिन निर्धारित किए गए हैं ताकि आप अपने पूर्वजों को याद करें और उनका तर्पण करवा कर उन्हे शांति और तृप्ति प्रदान करें, जिससे आपको उनका आर्शिवाद और सहयोग मिले लेकिन पारिवारिक बंधन से अलग आजमगढ़ में एक ऐसी संस्था है जो उन लोगों का अन्तिम संस्कार और श्राद्धकर्म, तर्पण, ब्रम्हभोज का कार्यक्रम करता है जिन अज्ञात शवों का कोई नही है। आजमगढ़ में एक सामाजिक संगठन ने लोगों के सहयोग से अगस्त 2013 से अबतक 268 लावारिस लाशों का जहां अन्तिम संस्कार किया वहीं पितृपक्ष में मृतक आत्मा को शांति मिल सके इसके लिए विधिवत तर्पण कर ब्राम्हणों सहित आम लोगों को भोज कराया। संगठन के लोगों का कहना है कि पहले लावारिस लाश का पोस्टमार्टम होने के बाद उन्हें नदी में पुलिस द्वारा फ़ेंक दिया जाता था। इससे न केवल तमसा नदी में प्रदूषण होता था बल्कि लाशों की दुर्गति भी होती थी। कुत्ते आदि जानवर नोचते रहते थे।

कहते है मौत के बाद शमशान तक जाने के लिए चार कन्धो का सहारा जरूरी होता है किन्तु लावारिश शवो को कन्धा देने वाला आज के जमाने में शायद ही कोई मिले। समाज में लगातार दरकते रिश्तों के चलते आज के समय एक दूसरे के बुरे वक्त में एक दूसरे के साथ खड़ा होना तो दूर सहयोग की भावना जहां खत्म होती जा रही है वहीं आजमगढ़ में एक ऐसी संस्था है जिसने पिछले कई वर्षों से अब तक जिले में मिली 268 लावारिश लाशों का विधि पूर्वक अन्तिम संस्कार किया और साथ संस्था के सदस्यों ने पितृपक्ष के मौके पर मुण्डन करा कर ब्राम्हणों के द्वारा तर्पण का कार्यक्रम भी सम्पन्न कराया ताकि मृत आत्मा को शान्ति मिल सके। समाजिक संस्था के इस कार्य से पुलिस द्वारा लावारिश लाशों को नदी में फेके जाने से होने वाले प्रदूषण पर नियंत्रण करने का भी एक सफल प्रयास है।

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