Jharkhand Politics: साल 2024 की शुरुआत में जब हेमंत सोरेन गिरफ्तार किए गए, तो उससे ठीक कुछ घंटे पहले उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद झारखंड के अगले मुख्यमंत्री के रूप में चंपई सोरेन का नाम सामने आया. चंपई के मुख्यमंत्री बनने और कैबिनेट के विस्तार के बाद कांग्रेस के करीब 12 नेताओं की नाराजगी सामने आई थी. सवाल उठ रहा है कि अब चंपई के इस्तीफे के पीछे गठबंधन का दबाव है या फिर ये जेएमएम का चुनावी प्लान है, आइए समझते हैं.

Jharkhand Politics: झारखंड में एक बार फिर मुख्यमंत्री बदल रहा है. हेमंत सोरेन एक बार फिर मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे. बुधवार को हुई गठबंधन के विधायक दलों की बैठक में हेमंत सोरेन के सर्वसम्मति से नेता चुन लिया गया. झारखंड हाई कोर्ट से जमानत मिलने के बाद बाहर आए हेमंत सोरेन ने चंपई सोरेन से इस्तीफा दिलवा दिया और खुद सीएम बनने की कवायद में जुट गए. हेमंत सोरेन के इस फैसले के बाद राजनीति के कुछ जानकार इसे चुनावी प्लान बता रहे हैं, तो कुछ इसे गठबंधन का दबाव बता रहे हैं. आइए समझते हैं कि आखिर माजरा क्या है.

सबसे पहले समझते हैं कि आखिर गठबंधन के दबाव वाली बात…. ये बात उस वक्त की है, जब चंपई सोरेन झारखंड के नए मुख्यमंत्री बने थे और बारी कैबिनेट विस्तार की थी. जब संभावित मंत्रियों के नाम आए और शपथ ग्रहण समारोह होने लगा तो कांग्रेस के उन्हीं विधायकों का नाम सामने आया, जो हेमंत सरकार में भी मंत्री थे. बाकी बचे विधायकों ने इसे लेकर नाराजगी जताई और दिल्ली पहुंच गए. 

कांग्रेस के नाराज 12 विधायकों के दिल्ली पहुंचने के बाद मनाने का सिलसिला शुरू हुआ. यहां तक की चंपई सोरेन को बयान देना पड़ा कि कोई नाराजगी नहीं है. गठबंधन में सब ठीक ठाक है. उधर, कहा गया कि पार्टी आलाकमान से मुलाकात और आश्वासन के बाद कांग्रेस के नाराज विधायक दिल्ली से रांची लौट आए. उसके बाद कभी कांग्रेस के विधायकों ने अपनी नाराजगी नहीं जताई. अब पार्टी आलाकमान ने उन्हें क्या आश्वासन दिया था, ये अब तक सामने नहीं आया,

गठबंधन का दबाव नहीं, लेकिन ऐसे झलकी कांग्रेस विधायकों की नाराजगी

चंपई सोरेन के हटाए जाने के पीछे गठबंधन के दबाव वाली कोई बात तो फिलहाल नजर नहीं आती. हां, ये भी सच है कि जब चंपई को हटाए जाने की बात सामने आई, तो गठबंधन में शामिल कांग्रेस के अधिकतर विधायकों ने सर्वसम्मति से इसका समर्थन किया और कहा कि हेमंत सोरेन को ही मुख्यमंत्री होना चाहिए. इससे उनकी चंपई से नाराजगी जरूर झलकती है.

अब समझते हैं कि क्या चंपई को हटाना, JMM का चुनावी प्लान है?

एक लिहाज से देखा जाए, तो चंपई के मुख्यमंत्री पद से हटाने के कदम को झारखंड मुक्ति मोर्चा का चुनावी प्लान समझा जा सकता है. झारखंड विधानसभा चुनाव में चार से पांच महीने का वक्त है. जेएमएम के सूत्रों के मुताबिक, हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद चंपई सोरेन झारखंड की सरकार ठीक-ठाक तरीके से चला रहे थे. सूत्रों के मुताबिक, अब जमानत के बाद हेमंत सोरेन के बाहर आने के बाद पार्टी एक बार फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर हेमंत को बैठाना चाहती है, ताकि चुनाव के पहले जनता के बीच ये संदेश लेकर जाया जाए कि केंद्र सरकार की जांच एजेंसी ने झूठे मामले में फंसाया, लिहाजा उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा और 5 महीने तक जेल में रहना पड़ा.

हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद पार्टी ने लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन किया है. अब कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री वाले दांव के जरिए झारखंड मुक्ति मोर्चा एक बार फिर विधानसभा चुनाव में लोकसभा चुनाव वाला प्रदर्शन दोहराना चाहती है. हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव के नतीजों से के बाद ये सामने आया कि आदिवासी वोट का झुकाव जेएमएम की तरफ हुआ है. राज्य की एसटी के आरक्षित 5 में से एक भी सीट पर भाजपा को जीत नहीं मिली. विधानसभा में 81 में से 28 ऐसी सीटें हैं, जो आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं, ऐसे में पार्टी एक बार फिर लोकसभा चुनाव वाला प्रदर्शन कर एक बार फिर सत्ता का स्वाद चखना चाहती है. झारखंड मुक्ति मोर्चा के इस दांव को प्लानिंग कहना गलत नहीं होगा. 

जेएमएम, हेमंत के रूख से चंपई कितने खुश, कितने नाराज?

झारखंड मुक्ति मोर्च और हेमंत सोरेन ने भले ही विधानसभा चुनाव के लिए प्लानिंग के तहत चंपई सोरेन से इस्तीफा लिया हो, लेकिन वे पार्टी के इस कदम से नाराज बताए जा रहे हैं. हेमंत जब पांच महीने पहले मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों के तहत गिरफ्तार हुए थे, तब मुश्किल परिस्थितियों में चंपई ने सत्ता संभाली थी. चंपई, पूर्व की हेमंत सरकार की योजनाओं को अच्छे से आगे भी बढ़ा रहे थे, लेकिन अचानक उन्हें पार्टी ने ही ‘डीरेल’ कर दिया. 

सूत्रों ने बताया कि चंपई सोरेन, अपनी ही पार्टी के इस फैसले से अचंभित हैं और तर्क दिया कि पार्टी के इस कदम से जनता के बीच अच्छा संदेश नहीं जाएगा. चंपई खुद भी बड़े आदिवासी नेता हैं और कोल्हान क्षेत्र, जहां विधानसभा की 14 सीटें हैं, वहां उनकी अच्छी पकड़ भी है. ऐसे में उन्हें हटाना, खुद उनके समझ से परे हैं. उन्होंने ये भी कहा कि हेमंत जमानत पर बाहर हैं और उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद उनकी सरकार को अस्थिर करने की फिर से कोशिशें भी हो सकती हैं. 

जेएमएम और उसके गठबंधन सहयोगियों की बैठक में मौजूद एक सूत्र के मुताबिक, चंपई ने ये भी कहा कि चुनाव में कुछ ही महीने बचे हैं और मैं खुद हेमंत को अपने बेटे की तरह मानता हूं, ऐसे में इस कदम की जरूरत ही क्या थी. चंपई सोरेन, हेमंत के पिता और झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक दिशोम गुरु शिबू सोरेन के करीबी हैं. शायद यही वजह है कि जब हेमंत सोरेन जेल गए, तो मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरेन, हेमंत की पत्नी कल्पना सोरेन और छोटे बेटे बसंत सोरेन के बीच ‘राजनीतिक जंग’ छिड़ गई थी. नतीजा ये हुआ कि सीता सोरेन भाजपा में चली गईं, आखिरकार किसी तरह बसंत को चंपई कैबिनेट में शामिल कर मना लिया गया.

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