Jharkhand High Court on New Criminal Laws: देश में 1 जुलाई से लागू हो रहे नए कानून पर झारखंड हाईकोर्ट ने मॉब लिंचिंग से संबंधित भारतीय न्याय संहिता के सेक्शन में दिक्कतों की पहचान की है. हाई कोर्ट ने कहा है कि इसके ‘गंभीर परिणाम’ हो सकते हैं. नए आपराधिक कानून सोमवार से लागू हो गए हैं.

Jharkhand High Court on New Criminal Laws: झारखंड हाईकोर्ट ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण मामले में यूनिवर्सल लेक्सिसनेक्सिस की ओर से प्रकाशित भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की एक खामी का खुद संज्ञान लिया. जस्टिस आनंद सेन और जस्टिस सुभाष चंद की खंडपीठ ने पाया कि इस संस्करण में हाल ही में लागू हुए कानून में लिंचिंग से जुड़े महत्वपूर्ण प्रावधान – बीएनएस की धारा 103(2) – को गलत तरीके से छापा गया है.

गलत छपी धारा का हो सकता है गंभीर परिणाम

गौरतलब है कि भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) सोमवार से ही देशभर में लागू हो गई है. ऐसे में इस महत्वपूर्ण प्रावधान की गलत व्याख्या कानून के लागू होने में दिक्कतें खड़ी कर सकती थी. 

नई धारा 103 (2) में साफ-साफ रूप से कहा गया है कि “जब पांच या उससे ज्यादा लोगों का समूह मिलकर किसी व्यक्ति की हत्या जाति, धर्म या समुदाय, लिंग, जन्मस्थान, भाषा, व्यक्तिगत आस्था या किसी अन्य ‘ऐसे ही आधार पर’ करता है, तो ऐसे ग्रुप के प्रत्येक सदस्य को मृत्युदंड या आजीवन कारावास से दंडित किया जाएगा और जुर्माना भी लगाया जा सकता है.”

कैसे छोटा सा अंतर पैदा कर सकता है बड़ी परेशानी

लेकिन, लेक्सिसनेक्सिस संस्करण में “किसी अन्य ऐसे ही आधार पर” के स्थान पर “किसी अन्य आधार पर” शब्दों का इस्तेमाल किया है. ये छोटा सा अंतर कानून के मायने को पूरी तरह से बदल सकता था. कानून का साफ इरादा ऐसे ही आधारों को संबोधित करना था, जिनका मकसद किसी व्यक्ति या समूह के खिलाफ द्वेष या पहले से तय माइंडसेट हो. मगर “किसी अन्य आधार पर” शब्दों का इस्तेमाल होने से कानून का दायरा संपत्ति विवाद जैसे मामलों तक भी बढ़ सकता था, जो लिंचिंग की परिभाषा में नहीं आते.

हाईकोर्ट ने क्या दिए हैं आगे के निर्देश

पीठ ने इस गलती को “गंभीर परिणाम” वाला बताते हुए पब्लिशर्स को नेशनल और रीजनल समाचार पत्रों में एक स्पष्टीकरण (corrigendum) प्रकाशित करने का निर्देश दिया है. साथ ही, झारखंड हाईकोर्ट एडवोकेट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष रितु कुमार के अनुसार प्रकाशक को एक नोटिस भी जारी किया गया है ताकि भविष्य में ऐसी गलतियां ना हों.

यह घटना न सिर्फ कानून के प्रकाशन में सटीकता के महत्व को रेखांकित करती है, बल्कि यह भी बताती है कि न्यायपालिका कितनी सतर्कता से कानून के कामकाज पर नजर रखती है. लिंचिंग की घटनाओं को रोकने के लिए बनाए गए कानून में किसी भी तरह की कन्फ्यूजन भविष्य में मुश्किलें पैदा कर सकती थी.

क्या रहा आखिरी निर्देश

झारखंड हाईकोर्ट के हस्तक्षेप से बीएनएस की धारा 103 (2) की सही व्याख्या सुनिश्चित हो गई है. इससे यह साफ हो गया है कि कानून केवल उन्हीं मामलों में लागू होगा जहां किसी व्यक्ति को जाति, धर्म, समुदाय आदि के आधार पर हिंसक भीड़ की तरफ से मार डाला जाता है. उम्मीद की जाती है कि यह कदम लिंचिंग की जघन्य प्रथा को रोकने में मददगार होगा.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here