कुछ परिस्थितियां ऐसी होती हैं जब व्यक्ति अपनी संपत्ति से जुड़े निर्णय नहीं ले सकता. कई बार मेंटल हेल्थ और कोमा में व्यक्ति कुछ भी फैसला लेने की स्थिति में नहीं होता है. अगर बात किसी के जीवन पर आ जाए तो हमेशा ये बहस छिड़ती है क्या उसकी पत्नी उसकी संपत्ति को सेलकर सकती है या नहीं. मद्रास हाई कोर्ट ने एक फैसले में साफ कर दिया है.
मद्रास हाई कोर्ट ने कोमा में पड़े एक शख्स की पत्नी को उसकी 1 करोड़ रुपये से ज्यादा की संपत्ति बेचने या बंधक देने की इजाजत दे दी है. कोर्ट ने कहा है कि इससे अर्जित आय का इस्तेमाल उसके इलाज और परिवार के पालन-पोषण के लिए किया जा सकता है. जस्टिस जीआर स्वामिनाथन और पीबी बालाजी की बेंच ने सिंगल जज की ओर से पारित आदेश को पलट दिया, जिन्होंने 23 अप्रैल 2024 को चेन्नई की एस शशिकला की रिट याचिका को खारिज कर दिया गया था.
एस शशिकला ने हाई कोर्ट से मांग की थी कि उन्हें अपने पति एम शिवकुमार का अभिभावक नियुक्त कर दिया जाए. वे जनवरी 2024 से ही कोमा में हैं और निर्णय लेने की स्थिति में नहीं हैं. याचिकाकर्ता ने न्यायलय से अनुरोध किया था कि उसे पति का अभिभावक नियुक्त किया जाए और बैंक खातों के संचालन की इजाजत मिले. महिला ने यह भी कहा था कि उसे पति के चेन्नई सेंट्रल रेलवे स्टेशन से सटे वॉलटैक्स रोड पर अचल संपत्ति को बेचने या बंधक रखने की मंजूरी मिले.
पहले अदालत ने क्या कहा था?
कोर्ट ने यह कहा था कि अभिभावक की नियुक्ति के लिए रिट याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता है. मेंटल हेल्थकेयर एक्ट 2017 में वित्तीय मामलों के निपटारे को लेकर ऐसा कोई प्रावधान नहीं है. उन्होंने याचिकाकर्ता से कहा था कि ऐसी नियुक्ति के लिए उन्हें सिविल कोर्ट जाना चाहिए.
सुनवाई के बाद कोर्ट ने क्यों बदला फैसला?
सिंगल बेंच से असमहत होते हुए जस्टिस स्वामिनाथन की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि ऐसे एक मामले में केरल हाई कोर्ट ने अपने रिट ज्युरिस्डिक्शन को बढ़ाने की अपील की थी और कहा था कि यह ‘पैरेंस पैट्रिया’ ज्युरिसडिक्शन का मामला है. इसका इस्तेमाल तब किया जा सकता है कि जब कोमा की अवस्थी में रोगी कोई फैसला न कर पाए और कानून भी कोई राहत न दे सके.
कैसे पत्नी को अधिकार देने के लिए सहमत हुआ कोर्ट?
बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता ने 13 फरवरी से 4 अप्रैल के बीच एक निजी अस्पताल में अपने पति के इलाज के लिए पहले ही लाखों रुपये खर्च कर चुकी है. अब घर पर भी उसके इलाज के लिए अस्पताल जैसा ही सेटअप करना पड़ा है. याचिकार्ता के बच्चे वयस्क हो चुके हैं. उन्होंने अपनी मां को केयरटेकर नियुक्त करने पर समहति दी. बेटी भी जजों के सामने रो पड़ी कि अगर मां को संपत्ति का अधिकार नहीं मिलेगा तो वे सड़क पर आ जाएंगे.
कोर्ट ने दे दी महिला को मंजूरी
जस्टिस स्वामीनाथन ने फैसला सुनाया कि याचिकार्ता के पास कोई अन्य विकल्प नहीं है. ऐसे में कोमा में पड़े शख्स का इलाज इतना आसान नहीं है. इसके लिए पैसों की जरूरत पड़ती है. याचिका में जिस संपत्ति का जिक्र है वह शिवकुमार की है. इसका इस्तेमाल उनके लाभ के लिए ही करना जरूरी है. राज्य उनकी देखभाल नहीं कर रहा है ऐसे में अपीलकर्ता को सिविल कोर्ट में जाने के लिए बाध्य करना सही विकल्प नहीं है. सिंगल बेंच के फैसलो को पलटते हुए उन्होंने शशिकला पति की संरक्षिका नियुक्त किया और उन्हें उनकी संपत्ति का मालिकाना हक दिया, जिसे वे बेच या बंधक रख सकती हैं.