युपी में राजनीति पर परचम लहराता है. इसी वजह हर सियासी दल यूपी में सारा जोर लगाकर यहां सबसे ज्यादा सीटें जीतने की कोशिश करता है. और यूपी का मिजाज ऐसा है कि हर दो लोकसभा चुनावों के बाद बदल जाता है. इस लोकसभा चुनावों में ये तो माना जा रहा था कि यूपी का मिजाज बदला हुआ है. कोई लहर नहीं थीं. जनता सन्नाटा खींचे हुए थीं. कोई लहर जैसी चीज नहीं लग रही थी.
चुनावों से पहले यूपी के ज्यादातर शहरों से लेकर गांवों और कस्बों में एक अजीब तरह का चुनावी सन्नाटा था. विपक्ष का ना तो झंडा नजर आ रहा था और ना ही पोस्टर बैनर. अलबत्ता बीजेपी के झंडे और बैनर से शहर गांव जरूर अटे हुए थे. ये अजीब स्थिति थी और साथ में एक अजीब सी चुप्पी. जनता कुछ नहीं बोल रही थी.
यूपी में बीजेपी के नेताओं ने तूफानी दौरे किए तो विपक्ष के इंडिया गठबंधन ने खुद को झोंक दिया. इसके बाद भी चुनावी लहर का कोई नामोनिशान नहीं दिखा. इससे जाहिर था कि जनता के मन कुछ और ही है. हालांकि अभी चुनाव परिणाम नहीं आए हैं लेकिन रुझान समय बीतने के साथ मजबूत हो रहे हैं. और कहा जाता है कि दोपहर 12 बजे के बाद जो रुझान नजर आने लगते हैं वो मुकम्मल परिणाम में बदल जाते हैं.
नहीं हुआ मंदिर का फायदा
चुनावों से पहले माना जा रहा था कि यूपी में राम मंदिर निर्माण बीजेपी को फायदा देगा. केंद्र और राज्य में सत्ताधारी दल को पूरा विश्वास था कि राम मंदिर जनता की आकांक्षाओं पर उसे बहुत ऊपर ले जाएगा. दरअसल पिछले दो दशकों से बीजेपी की पॉलिटिक्स काफी हद तक इसके चारों ओर ही घूम रही थी. लेकिन मंदिर बनने के साथ देश और प्रदेश में बहुत कुछ और भी बदला.
400 पार का नारा क्या गलत संदेश दे गया
चुनाव रुझान संकेत दे रहे हैं कि अल्पसंख्यकों के वोट तो पूरी तरह से अगर इंडिया गठबंधन के पास चले गए तो ऐसा लग रहा है कि दलितों और पिछड़ों के वोट भी बीजेपी के खिलाफ शिफ्ट हुए. बीजेपी का 400 पार का नारा यूपी के गांवों में ये संदेश दे रहा था कि अगर ये इस बहुमत से सत्ता में आए तो संविधान भी बदलेगा औऱ आरक्षण भी खत्म होगा.
क्या था यूपी का असल मुद्दा, क्यों थी नाराजगी
यूपी देश का सबसे ज्यादा बेरोजगारों का प्रदेश भी है. ये यहां का बड़ा मुद्दा है. चुनावों में वोट देने वालों से बातचीत के दौरान जनता की नाराजगी इस बात को लेकर साफ नजर आई कि ना तो रोजगार है और ना ही महंगाई कम होने का नाम ले रही है. आखिर करें तो करें.
शहर और गांवों के वोटरों का अलग मिजाज
बीजेपी ने विकास और सुशासन का जो नारा सत्ताधारी पार्टी ने दिया, वो शायद उतना चल नहीं पाया. यही वजह है कि उसके बहुत से वो वोटर भी उससे रुठ गए. कुछ वोटर हमेशा फ्लोटिंग होते हैं, जो अपनी निष्ठा बदलते हैं और मुद्दों के साथ हालात के हिसाब से वोट देते हैं. यूपी में शहर और गांवों की राजनीति भी अलग चलती है.
मंहगाई से लेकर बेरोजगारी तक
जहां यूपी का शहरी वोटर बीजेपी के साथ ज्यादा रहता आया है तो गांवों में ऐसा बिल्कुल नहीं है. असल में बेरोजगारी, किसानों की हालत, अग्निवीर और महंगाई का असर गांवों पर ज्यादा हुआ है. दरअसल यूपी के गांवों से बड़े पैमाने पर लोग सेना में जाते हैं. अग्निवीर योजना ने उनकी आकांक्षाओं पर एकतरह से चोट पहुंचाई. किसान अलग हालात से नाराज चल रहे थे. महंगाई लगातार बहुत बढ़ती जा रही थी. इन सबने बीजेपी को लेकर नाराजगी बढ़ाई. जाहिर है कि ये चुनाव एंटी एकैंबेसी फैक्टर के पहलू भी यूपी में बड़ा फैक्टर था.
बीएसपी का वोट इंडिया गठबंधन की ओर ट्रांसफर हुआ
वहीं समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने मिलकर तरीके से तालमेल किया. टिकट का बंटवारा भी समझबूझ के साथ किया. और ऐसा लग रहा है कि बहुजन समाज पार्टी का वोटर बीजेपी के बजाए इस बार इंडिया गठबंधन की ओर ट्रांसफर हो गया. रही सही कसर बीजेपी नेताओं के नफरती भाषणों ने निकाल दी. दरअसल ये समझना चाहिए कि जनता को काम चाहिए.
संविधान को रखकर लोगों ने शादियां कीं
यूपी में एक सीनियर जर्नलिस्ट शाहिद चौधरी का कहना है कि यूपी में 400 पार का नारा बीजेपी के खिलाफ गया. चुनावों से पहले बीजेपी नेताओं ने कहा कि हम 400 सीटें लाकर संविधान बदल देंगे. इसने जाटवों के बीच खिलाफ माहौल तैयार किया. उन्होंने कहा कि मैने पश्चिम यूपी में कई ऐसी शादियों में शिरकत की जहां जाटवों और दलितों ने संविधान की कॉपी रखकर शादी रचाई.
उन्होंने ये भी कहा कि पश्चिम उत्तर प्रदेश में अवारा पशु बड़ी समस्या हैं. पिछले चुनावों में बीजेपी ने कहा था कि हम दस दिनों में इसे दूर कर देंगे लेकिन ये आजतक दूर नहीं हो पाई. लोगों की नाराजगी इसलिए भी रही कि बीजेपी के दिग्गज नेता चुनावों के दौरान असल मुद्दों को एड्रेस करने की बजाए ऐसे मुद्दों को उभारने की कोशिश की जो जनता को गुमराह करने के लिए काफी थे।