वाराणसी/संसद वाणी : गोस्वामी तुलसीदास जहां कभी रियाज किया करते थे, वहां आज काशी की बेटियां दंगल करती नजर आती हैं। आज नागपंचमी पर वाराणसी का तुलसी घाट गुलजार है। 478 साल तक यहां पर लड़कों की कुश्ती और पहलवानी की रवायत थी, मगर आज लड़कियां दम दिखा रही हैं। लोग भी उनकी हौसला अफजाई कर रहे हैं। इसके आलावा इस वर्ष नीदरलैंड के हर्बर्ट भी जोड़ी गद्दा भी फेरते दिखे।
“कुश्ती तो लड़कों का खेल है” इस पुरानी रखायत को तोड़ते हुए तुलसी घाट स्थित स्वामीनाथ अखाड़े का द्वार बेटियों के लिए खोल दिया गया है। बेटियां रोज सुबह-शाम दो घंटे यहां पर पहलवानी और दांव-पेंच लगाती दिख जाती हैं। बीते 3 साल में दर्जनों लड़कियां इस अखाड़े से निकलकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपने दांव आजमा चुकी हैं।
नागपंचमी के दिन बालक और बालिका का दिखा दांव-पेंच
नागपंचमी के दिन स्वामीनाथ अखाड़े में महिला पहलवानों को लड़ाने की नई परंपरा की शुरुआत हुई है। इस आंकड़े में पिछले 7 वर्षों से लड़कियां दंगल लड़ रही हैं। इस अखाड़े से निकलकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपने दांव आजमा चुकी हैं। काशी में तुलसी घाट पर अखाड़े में सैकड़ों वर्ष बाद महिलाओं को एंट्री मिली थी। गौरतलब है कि इस अखाड़े में पहले पुरुष पहलवानी करते हुए दिखते थे।
मेरे DNA में है पहलवानी
अखाड़े की पहलवान कशिश बताती हैं-मुझे यहां लड़ना काफी पसंद है। पहलवानी मेरे DNA में है। जब से अखाड़े में लड़कियों की एंट्री हुई है, तब से मैं यहां पहलवानी कर रहीं हूं। पट धोबी पछाड़, कलाजंग दांव और बगलडूब जैसे कई दांव-पेंच यहां पर सीखे हैं। मुझे खुशी है कि यह बनारस का पहला अखाड़ा है जहां लड़कियां कुश्ती लड़ती हैं। मैं सौभाग्यशाली हूं कि इसकी शुरुआत मुझसे ही हुई थी। कशिश के साथ ही आज अखाड़े के रिंग में अपना दमखम दिखाने के लिए आस्था, पलक, पायल, अंजलि, श्रृष्टि, गूंगून आदि का भी कहना है कि वे तीन साल में कई जगहों पर अपने परचम लहरा चुकी हैं।