Devinder Pal Singh Bhullar: देविंदर पाल भुल्लर कि रिहाई के मामले में अरविंद केजरीवाल की मुश्किलें बढ़ गई हैं. उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने गृहमंत्रालय को सौंपी गई रिपोर्ट में आम आदमी पार्टी (AAP) पर चरमपंथी खालिस्तानी समूह से संबंध रखने का दावा किया है.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं. उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने उन पर आरोप लगाया है कि उनकी पार्टी आप ने प्रतिबंधित खालिस्तानी चरमपंथियों के समूह से राजनीतिक फंडिंग प्राप्त की है. उपराज्यपाल ने प्राप्त शिकायत के आधार पर गृहमंत्रालय से NIA की जांच कराने का आग्रह किया है. रिपोर्ट के मुताबिक, शिकायत में कहा गया है कि केजरीवाल के नेतृत्व वाली पार्टी आप ने देवेंद्र पाल सिंह भुल्लर की रिहाई में मदद करने के लिए खालिस्तानी चरमपंथी समूह SFJ से फंडिंग हासिल की है. आइए जानते हैं कि आखिर कौन है देविंदर पाल भुल्लर जिसकी वजह से दिल्ली के मुख्यंमत्री की मुसीबत बढ़ गई है. 

दिल्ली बम विस्फोट का है दोषी 

देविंदर पाल सिंह भुल्लर साल 1993 के दिल्ली बम विस्फोट मामले का दोषी है. रायसीना स्थित युवा कांग्रेस के मुख्यालय के पास हुए धमाके में 9 लोगों की मौत हो गई थी और 30 लोग घायल हुए थे. खालिस्तान लिबरेशन फोर्स के आतंकी भुल्लर ने यह हमला तत्कालीन युवा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष मनिंदरजीत सिंह बिट्टा को निशाना बनाने के लिए किया गया था. इस हमले में बिट्टा गंभीर रूप से घायल हो गए थे.  इससे पहले भुल्लर पर और भी कई तरह के आतंकी हमले करने का आरोप था.

जर्मनी से मांगी थी राजनीतिक शरण 

29 अगस्त 1991 को चंडीगढ़ के एएसपी सुमेध सिंह सैनी की कार को विस्फोट से उड़ा दिया गया था. इस हमले में भी भुल्लर का नाम आया था. जांच के बाद पता चला कि भुल्लर खालिस्तान लिबरेशन फोर्स का कट्टर आतंकी था.  इस बम धमाके के बाद वह जर्मनी भाग गया और वहां जाकर उसने राजनीतिक शरण मांगी. हालांकि जर्मनी ने उसकी राजनीतिक शरण की मांग को ठुकराते हुए भारत को प्रत्यर्पित कर दिया. बम विस्फोट से पहले देविंदर पाल सिंह भुल्लर ने लुधियाना के गुरु नानक इंजीनियरिंग कॉलेज से ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की थी. उसके पिता पंजाब सरकार के ऑडिट विभाग में अफसर थे और मां पंजाब ग्रामी विकास में सुपरवाइजर. 

सुप्रीम कोर्ट ने बदला फैसला

दिल्ली बम विस्फोट के कारण उसे आजीवन कारावास की सजा काट रहा है. भुल्लर को टाडा अदालत ने इस मामले में दोषी ठहराया था. इसके बाद साल 2001 में  उसे मौत की सजा सुनाई गई. वह 1995 से जेल की सलाखों के पीछे है. सुप्रीम कोर्ट ने 31 मार्च 2014 को उसकी दया याचिका पर निर्णय लेने में आठ साल की अस्पष्टीकृत और अत्यधिक देरी और मानसिक बीमारी के कारण पर उसकी मौत की सजा को आजीवन कारावास की सजा में बदल दिया था. 

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