New Indian Laws in Judiciary: भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) के लागू होने से भारतीय दंड व्यवस्था में एक नया अध्याय शुरू हुआ है. ये नए कानून न सिर्फ भारतीय दंड प्रणाली को आधुनिक बनाते हैं बल्कि इसे और अधिक प्रभावी और न्यायसंगत बनाने का प्रयास करते हैं. यह अभी देखना बाकी है कि ये नए कानून कितने कारगर साबित होते हैं, लेकिन निश्चित रूप से ये भारतीय कानून व्यवस्था में सकारात्मक बदलाव लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं.

New Indian Laws in Judiciary: भारत के न्यायिक इतिहास में 1 जुलाई 2024 का दिन एक मील का पत्थर साबित होने वाला है. इस दिन तीन नए दंड विधायी सुधार लागू किए गए, जिन्हें औपनिवेशिक काल से चले आ रहे भारतीय दंड संहिता (IPC), दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act) की जगह पर लागू किया गया. इन नए कानूनों को भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) के नाम से जाना जाता है.

इन नए कानूनों का उद्देश्य भारतीय दंड व्यवस्था को आधुनिक बनाना और उसे 21वीं सदी की मुश्किलों से निपटने में सक्षम बनाना है. आइए इन तीनों कानूनों पर गहराई से नजर डालें और समझें कि वे भारतीय कानून व्यवस्था में क्या-क्या बदलाव लाते हैं:

1. भारतीय न्याय संहिता (BNS) – 1860 में बने इंडियन पीनल कोड की जगह अब भारतीय न्याय संहिता 2023

यह कानून भारतीय दंड संहिता (IPC) को रिप्लेस करता है. इसमें कुल 358 धाराएं हैं, जो IPC की 511 धाराओं से कम हैं. यह कमी अपराधों की श्रेणीकरण को युक्तिसंगत बनाकर हासिल की गई है.

BNS में 20 नए अपराधों को जोड़ा गया है, जो तेजी से बदलते समाज की जरूरतों को पूरा करते हैं. इनमें साइबर क्राइम , मानव तस्करी, घरेलू हिंसा, एसिड हमले, और मानहानि जैसे गंभीर क्राइम शामिल हैं.

गंभीर अपराधों के लिए दंड की सजा को सख्त किया गया है, ताकि अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा देकर अपराधों पर अंकुश लगाया जा सके. साथ ही, कुछ कम गंभीर अपराधों के लिए सामुदायिक सेवा को दंड के रूप में लागू किया गया है, जिसका उद्देश्य अपराधियों का सामाजिक पुनर्वास करना है.

गंभीर अपराधों में अनिवार्य न्यूनतम सजा का प्रावधान भी किया गया है, ताकि न्याय प्रणाली में एकरूपता आए और पीड़ितों को शीघ्र न्याय मिल सके.

बदल जाएंगी ये धाराएं

एक जुलाई से लागू होने वाले इन नियमों के बाद से जुर्म की कई धाराओं में भी बदलाव देखने को मिलेगा जैसे कि हत्या के लिए आईपीसी की धारा 302 बदलकर 101 हो जाएगी, तो वहीं ठगी करने वाली धारा 420 को अब 316 कर दिया गया है. हत्या के प्रयास में लगने वाली धारा 307 को 109 कर दिया गया है तो वहीं दुष्कर्म के लिए इस्तेमाल होने वाली धारा 376 बदलकर 63 हो जाएगी.

2. भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS)- 1898 में बने सीआरपीसी की जगह अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023

यह कानून दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) का स्थान लेता है. BNSS का उद्देश्य जांच और अभियोजन प्रक्रिया को तेज और अधिक कुशल बनाना है. इसमें पुलिस जांच में देरी को रोकने के लिए सख्त समय सीमाएं निर्धारित की गई हैं. साथ ही, अभियोजन पक्ष को मजबूत बनाने के लिए फॉरेंसिक जांच को अनिवार्य कर दिया गया है.

इस कानून में जमान प्रक्रिया को भी सुव्यवस्थित किया गया है. अब जमान की अर्जी जल्द से जल्द सुनवाई के लिए आएगी और तर्कसंगत आधारों पर जमान देने का प्रावधान किया गया है.

पुलिस जांच में मानवाधिकारों के उल्लंघन को रोकने के लिए सख्त प्रावधान किए गए हैं. साथ ही, गवाहों की सुरक्षा पर भी अधिक ध्यान दिया गया है. अभियोजन पेशेवरों और न्यायाधीशों के लिए भी विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाएंगे ताकि जांच और अभियोजन प्रक्रिया में और अधिक दक्षता लाई जा सके.

पीड़ितों के अधिकारों की रक्षा पर भी बल दिया गया है. कानून में यह प्रावधान किया गया है कि जांच और सुनवाई प्रक्रिया के दौरान पीड़ित को हर स्तर पर कानूनी सहायता और सुरक्षा प्रदान की जाएगी.

3. भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA)- 1872 में बने इंडियन एविडेंस कोड की जगह अब भारतीय साक्ष्य संहिता 2023

यह कानून भारतीय साक्ष्य अधिनियम (1872) का स्थान लेता है. BSA का उद्देश्य साक्ष्य अधिनियम को आधुनिक बनाने और न्याय प्रणाली में डिजिटल साक्ष्य को स्वीकार्यता प्रदान करना है. इसमें निम्नलिखित महत्वपूर्ण बदलाव शामिल हैं:

डिजिटल साक्ष्य को वैध सबूत के रूप में स्वीकार किया जाएगा. इसमें इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन, सोशल मीडिया पोस्ट, डिजिटल फुटप्रिंट आदि शामिल हैं.

फॉरेंसिक साक्ष्य को अधिक महत्व दिया जाएगा. डीएनए प्रोफाइलिंग, फिंगरप्रिंट विश्लेषण और अन्य वैज्ञानिक जांचों के परिणामों को अब मजबूत सबूत माना जाएगा.

गवाहों की गवाही को रिकॉर्ड करने की प्रक्रिया को डिजिटल बना दिया जाएगा. इससे गवाहों के बयानों में हेराफेरी की संभावना कम हो जाएगी और अभियोजन पक्ष को मजबूत सबूत मिल सकेंगे.

गवाहों की सुरक्षा के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं. इसमें वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए गवाही देने की सुविधा और गवाहों की पहचान को गोपनीय रखने के उपाय शामिल हैं.

नया कानून लागू होने के बाद आने वाले मुख्य बदलाव 

देश में नए कानून लागे होने के बाद सबसे बड़ा बदलाव यह है कि अब किसी भी ट्रायल कोर्ट को अपना फैसला अधिकतम 1095 दिन के अंदर सुनाना होगा. हाल ही में आए आंकड़ों के अनुसार देश में पेंडिंग पड़े 5 करोड़ केसों में 4.44 करोड़ केस ट्रायल कोर्ट में पेंडिंग हैं. इसके साथ ही कई ऐसे बदलाव हैं जो देश में कानून व्यवस्था को मौजूदा समय के अनुसार ढालते नजर आएंगे.

गंभीर अपराध

– नाबालिग से रेप के दोषी को उम्रकैद या फांसी होगी.

– पहले रेप की धारा 375, 376 थी, अब धारा 63, 69 होगी.

– हत्या की धारा 302 थी, अब यह 101 होगी. 

– गैंगरेप के दोषी को 20 साल तक की सजा या जिंदा रहने तक जेल की सजा होगी.

– मॉब लिंचिंग में फांसी की सजा होगी. 

– राजद्रोह की जगह चलेगा देशद्रोह का मुकदमा- इसका मतलब है कि आप देश के खिलाफ कोई भी ऐसी बात या काम नहीं कर सकते जिससे देश को आर्थिक, सुरक्षा या किसी भी अन्य तरीके से नुकसान हो.

एक्सीडेंट के मामले

– वाहन से किसी के घायल होने पर ड्राइवर अगर पीड़ित को पुलिस स्टेशन या अस्पताल ले जाता है तो उसे कम सजा दी जाएगी.

– हिट एंड रन केस में 10 साल की सजा मिलेगी.

– स्नैचिंग के लिए कानून नहीं है, अब कानून बन गया है.

– सिर पर लाठी मारने वाले पर अभी सामान्य झगड़े की धारा लगती है. अब विक्टिम के ब्रेन डेड की स्थिति में दोषी को 10 साल की सजा मिलेगी.

ट्रायल के मामले

– किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने पर पुलिस को उसके परिवार को जानकारी देनी होगी. पहले यह जरूरी नहीं था.

– किसी भी केस में 90 दिनों में क्या हुआ, इसकी जानकारी पुलिस विक्टिम को देगी.

– अगर आरोपी 90 दिनों के भीतर कोर्ट के सामने पेश नहीं होता है तो उसकी गैरमौजूदगी में भी ट्रायल होगा.

– गंभीर मामलों में आधी सजा काटने के बाद रिहाई मिल सकती है.

– अब ट्रायल कोर्ट को फैसला अधिकतम 3 साल में देना होगा.

– मुकदमा समाप्त होने के बाद जज को 43 दिन में फैसला देना होगा.

– फैसले के 7 दिन के भीतर सजा सुनानी होगी.

– दया की याचिका दोषी ही कर सकता है. अभी NGO या कोई संस्थान दया याचिकाएं दाखिल करता था.

हिट एंड रन के लिए भी बनाए कानून पर अभी नहीं होंगे लागू

गौरतलब है कि सरकार ने हिंट एंड रन केस के लिए भी कानून बनाए थे लेकिन  30 दिसंबर 2023 को जयपुर, मेरठ, आगरा एक्सप्रेस वे समेत देश के इलाकों में जब विरोध प्रदर्शन हुआ तो केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला ने अखिल भारतीय मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस (AIMTC) से भारतीय न्याय संहिता की धारा 106 (2) पर सलाह लेने तक इसे लागू न करने का फैसला किया.

इस धारा के तहत अगर किसी ड्राइवर की वजह से रोड एक्सीडेंट होता है और उस दुर्घटना में फंसने वाले यात्री की मौत हो जाती है और ड्राइवर बिना पुलिस को रिपोर्ट किए भाग जाता है तो उस पर गैर इरादतन हत्या का केस चलाया जाएगा. इतना ही नहीं आरोपी ड्राइवर को 7 लाख रुपए जुर्माना और 10 साल तक की सजा भी दी जा सकती है.

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